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मन को ले जाएं अशुभ से शुभ की ओर : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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– समता द्वारा आंतरिक वृत्तियों को शांत करने हेतु गुरुदेव ने किया प्रेरित

– वाव क्षेत्र के दीक्षार्थी की शोभायात्रा का आयोजन

17 अप्रैल, 2025, गुरुवार, वाव-थराद (गुजरात)।
अपनी गुजरात यात्रा के दौरान संत शिरोमणि युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य से वर्तमान में वाव धरा कृतार्थ हो रही है। आराध्य का प्रवास प्राप्त कर क्षेत्रवासियों में आध्यात्मिक उत्सव का सा माहौल है। सूर्याेदय से पूर्व प्रातः ब्रह्म बेला से वृहद मंगलपाठ, मुख्य प्रवचन कार्यक्रम, मध्याह्न में दर्शन देवा, रात्रि अर्हत वंदना आदि हर आध्यात्मिक गतिविधि का गुरुदेव के सान्निध्य में वाववासी भरपूर लाभ ले रहे हैं। प्रतिदिन आचार्यप्रवर द्वारा आगम वांङ्मय के सरल सुबोध वाणी में प्रवचन श्रवण कर श्रद्धालु समाज नित नवीन ज्ञान वर्षा से लाभान्वित हो रहे हैं।
वर्धमान समवसरण में आगम वांङ्मय आधारित प्रवचन फरमाते हुए परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने कहा कि व्यक्ति के भीतर संकल्प विकल्प उठते रहते हैं। जैसे पानी में तरंगें उठती रहती हैं उसी प्रकार हमारे मन में विचारों, संकल्पों, विकल्पों की तरंगें उठती रहती हैं। प्रश्न किया गया-आत्मा का साक्षात्कार कौन कर सकता है, तो कहा गया कि जिसके मन में राग-द्वेष की तरंगें नहीं उठती वह व्यक्ति आत्म तत्व को देख सकता है। कभी मन में क्रोध आ जाता है, कभी बैठे-बैठे मन में घमंड आ जाता है। किसी को छल करने का विचार आ जाता है। राग-द्वेष के भाव भी आ जाते हैं। जब तक मन में ये संकल्प-विकल्प उठते रहेंगे तब तक आत्मा का साक्षात्कार कठिन है। जो व्यक्ति समता में रहता है उसके ये संकल्प-विकल्प भी शांत हो जाते हैं। भीतर में राग-द्वेष है तभी मन की भी चंचलता रहती है। मन स्वयं क्या करे उसको चलाने वाले तो ये राग-द्वेष की वृत्तियां हैं। जैसे बस स्वयं नहीं चलती चलाने वाला ड्राइवर होता है उसी प्रकार यह संकल्प-विकल्प के मूल होते हैं।
एक कथानक के माध्यम से प्रेरणा देते हुए गुरुदेव ने आगे कहा कि मूल की ओर ध्यान देना आवश्यक है। व्यक्ति सोचता है कि दुख है, कष्ट है, किन्तु उसका मूल कारण क्या है ये देखना जरूरी है। कोई पौधा है उसको अगर सींचना है तो उसके पत्तों, फूलों पर नहीं मूल में पानी देना आवश्यक होता है उसी प्रकार समस्या के मूल को देखने का हम प्रयास करें तो समस्या का उन्मूलन हो सकता है। मन की चंचलता ऊपरी चीज है मूल कारण भीतर की वृत्तियां हैं जो मन को चंचल बना देती हैं। प्रवृत्ति सामने होती है किन्तु वृत्तियां भीतर हैं। प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष चल रहा है। प्रेक्षाध्यान मन की चंचलता को कम करने का उपाय बन सकता है। ध्यान, साधना के द्वारा भी इन भीतर की वृत्तियों को कम करने का प्रयास किया जा सकता है। हम गलत चिंतन ना करें, मन में अच्छा सात्विक चिंतन रहे। ध्यान की साधना अचिंतन की स्थिति होती है। हम मन को अशुभ से शुभ की ओर ले जाएं।
पूज्य गुरुदेव के उद्बोधन के पश्चात साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने सारगर्भित वक्तव्य दिया। वाव धरा पर आराध्य का अभिनंदन करते हुए मुनिश्री अक्षय प्रकाश जी, मुनिश्री निकुंज जी ने अपने विचार रखे। मेहता शाम जी भाई, छगन जी भाई परिवार ने गीत की प्रस्तुति दी। श्रीमती रेशमा मेहता ने भावों की अभिव्यक्ति दी।
प्रवास के चतुर्थ दिन आज वाव के दीक्षार्थी भाई मुमुक्षु कल्प मेहता की शोभायात्रा भी नगर में निकाली गई। तत्पश्चात दीक्षार्थी भाई को गुरुदेव ने मंगल शुभाशीष प्रदान किया। ज्ञातव्य है कि मुमुक्षु कल्प मेहता की दीक्षा आगामी 3 सितंबर, 2025 को अहमदाबाद चतुर्मास में घोषित है।

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