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धार्मिकता-आध्यात्मिकता से भावित हो मानव जीवन : आचार्यश्री महाश्रमण

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– महातपस्वी महाश्रमण का माडका में मंगल प्रवेश

– माडका के द्विदिवसीय प्रवास हेतु आचार्यश्री ने किया 11 कि.मी. का विहार

– स्वागत जुलूस में उमड़ा श्रद्धा का ज्वार, दर्शन पाकर निहाल हुए लोग

– माडका में ‘महाश्रमण द्वार’ का हुआ लोकार्पण, तेरापंथ भवन में विराजे तेरापंथाधिशास्ता

– माडकावासियों ने गुरुमुख से स्वीकारी संकल्पत्रयी

– एक भक्त को मुमुक्षु के रूप में साधना करने की मिली अनुमति

12 अप्रैल, 2025, शनिवार, माडका, वाव-थराद (गुजरात)।
भारत के पश्चिम राज्य गुजरात के सुदूर क्षेत्रों को अपनी चरणरज से पावन बनाने और अमृतवाणी से जनमानस को अभिसिंचन प्रदान करने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी शनिवार को अपनी धवल सेना के साथ माडका में पधारे तो सुदूर क्षेत्रों में अपने आराध्य की प्रतीक्षा करने वाले भक्तों की भावनाएं फलित हो उठीं व अपने आंगन में आराध्य को पाकर वे भावनाएं भव्य स्वागत जुलूस में जयघोष के रूप में पूरे वातावरण को महाश्रमणमय बना रही थीं।
शनिवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी वासरडा से गतिमान हुए। आज आचार्यश्री अपने दो दिवसीय प्रवास के लिए माडका की ओर बढ़ रहे थे। माडकावासी श्रद्धालु अपने आराध्य की लम्बे काल से प्रतीक्षा कर रहे थे। अपने आराध्य के अभिनंदन और आगमन के प्रसंग ने उनके आंतरिक भावों को मानों पंख लगा दिए। तभी तो कई किलोमीटर दूर तक माडकावासी आचार्यश्री के विहार के मध्य ही पहुंचने लगे थे। माडका गांव में प्रवेश से पूर्व ही नवनिर्मित ‘महाश्रमण द्वार’ के पास ही सैकड़ों की संख्या में माडकावासी मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल शुभागमन की बाट जोह रहे थे। जैसे ही आचार्यश्री नवनिर्मित द्वार के निकट पहुंचे श्रद्धालुओं के जयघोष से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के मंगल आशीर्वाद से नवनिर्मित ‘महाश्रमण द्वार’ का लोकार्पण हुआ। तदुपरांत भव्य स्वागत जुलूस के साथ महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने माडका गांव में मंगल प्रवेश किया। स्वागत जुलूस में न केवल तेरापंथ समाज के लोग, अपितु माडका का जन-जन अपनी सहभागिता दर्ज करा रहा था। गुजराती वेशभूषा में सजी बालिकाएं और महिलाएं मस्तक पर मंगल कलश लेकर ऐसे राष्ट्रसंत का स्वागत कर रही थीं। सभी पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री माडका में स्थित तेरापंथ भवन में पधारे। आचार्यश्री का माडका का दो दिनों का प्रवास यहीं होना निर्धारित है।
‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं की अपार भीड़ से प्रवचन पण्डाल पूरी तरह जनाकीर्ण नजर आ रहा था। आचार्यश्री के समवसरण में पधारते ही पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष से गूंज उठा। उपस्थित जनमेदिनी को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में चौरासी लाख जीव योनियां बताई गई हैं। अनंत जीव इस संसार में हैं, अनंत जीव मोक्ष को भी प्राप्त हो गए हैं। संसार के कोई-कोई जीव मोक्ष जाने वाले हो सकते हैं। संसारी जीव इन चौरासी लाख जीव योनियों में होते हैं। इन चौरासी लाख जीव योनियों में मनुष्य जीवन भी सम्मिलित है। भाग्यशाली प्राणी को मानव जीवन प्राप्त हो सकता है। यह जीवन बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। इस जीवन को पाकर जो इसे व्यर्थ में खो दे, वह इस जीवन की बहुत बड़ी भूल हो सकती है।
मानव जीवन मिलना मुश्किल व दुर्लभ भी है। जो दुर्लभ है, वह वर्तमान में सभी मानवों को प्राप्त हो गया है। इस मानव जीवन को सफल बनाने के लिए कोई साधुपन पा ले तो बहुत बड़ी बात होती है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए धर्म की आराधना, साधना की जा सके, इस पर आदमी को ध्यान देना चाहिए। गृहस्थ जीवन में धार्मिकता और आध्यात्मिकता रहे। इसके लिए आदमी को ईमानदारी का पालन करने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, आदमी को ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए। चोरी, झूठ और धोखाधड़ी ईमानदारी के विरोधी तत्त्व हैं। इनसे आदमी को बचने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में सच्चाई हो तो मानना चाहिए कि कुछ अंशों में प्रभुता उजागर हो सकती है। सच बोलने का साहस नहीं हो तो आदमी को मौन रह जाने का प्रयास करना चाहिए। सभी प्राणियों के साथ मैत्री भाव रखने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज माडका आना हुआ है। माडका में पहले भी आना हुआ था। आज आना हुआ है। आचार्यश्री ने माडका के उपस्थित श्रद्धालुओं से सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रतिज्ञाओं को स्वीकार करने का आह्वान किया तो समुपस्थित जनता ने उन प्रतिज्ञाओं को सहर्ष स्वीकार किया। परिख परिवार में कुछ अच्छी धार्मिक भावना बनी रहे।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरांत साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने भी श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान किया। आचार्यश्री के स्वागत में माडका के पूर्व सरपंच श्री गुमानसिंह चौहाण, माडका तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री हंसमुख भाई परिख, मूर्तिपूजक समाज के श्री विमल मेहता, श्री हिम्मतभाई दोसी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्री विशाल परिख ने आचार्यश्री के सम्मुख अपनी साधु बनने की भावना अभिव्यक्त की और परिजनों ने भी इस भावना को आचार्यश्री को स्वीकार करने की प्रार्थना की तो आचार्यश्री ने महती कृपा कराते हुए श्री विशाल परिख को मुमुक्षु के रूप में साधना करने की स्वीकृति प्रदान की। आचार्यश्री की स्वीकृति से पूरा वातावरण पुनः गुंजायमान हो उठा।

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