नव संवत्सर पर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने दिया समय प्रबन्धन का संदेश
– महातपस्वी का महाश्रम 15 कि.मी. का विहार कर पधारे फतेहगढ़
– श्री फतेहगढ़ उच्चत्तर माध्यमिक शाला पूज्यचरणों से हुआ पावन
– धर्म के लिए भी समय निकालने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
30 मार्च, 2025, रविवार, फतेहगढ़, कच्छ (गुजरात)।
जन-जन के मानस को आध्यात्मिक अभिसिंचन प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ वर्तमान में गुजरात राज्य कच्छ जिले में मंगल प्रवास व विहार कर रहे हैं। रविवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सेलारी गांव से मंगल प्रस्थान किया। रविवार को भारतवर्ष में पूरी दुनिया में हिन्दू नववर्ष व चौत्र नवरात्रि का उत्साह, उल्लास व उमंग भी देखने को मिल रहा था। नवरात्रि में घर में कलश स्थापन के साथ ही जगह-जगह शोभायात्रा, ध्वजयात्रा आदि भी देखने को मिल रही थी। आचार्यश्री सेलारी से प्रातःकाल की मंगल बेला में प्रस्थित हुए तो आज प्रकृति का रंग भी मानों बदला हुआ-सा था। मार्ग में नहरों आदि से गुजरती यात्रा और खेतों में तैयार खड़ी फसलों को घर ले जाने की तैयारी में किसान भी दिखाई दे रहे थे। सभी को अपने मंगल आशीष से आच्छादित करते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 15 किलोमीटर का विहार कर फतेहगढ़ में स्थित श्री सरकारी उच्चतर माध्यमिक शाला में पधारे। आज आचार्यश्री उस क्षेत्र में पहुंचे, जहां तेरापंथ धर्मसंघ के सातवें आचार्यश्री डालगणी ने अपनी मुनि अवस्था में चतुर्मास भी किया था।
माध्यमिक शाला परिसर में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्र में कहा गया है कि जो रात्रियां बीत जाती हैं, वह लौट कर नहीं आती हैं। धर्म करने वाली रात्रियां सफल और अधर्म करने वाली रात्रियां अफल हो जाती हैं। जो समय बीत जाता है, वह वापस नहीं आता। इसलिए मानव को सचेत किया जाता है कि वह अपने समय का सदुपयोग कर ले।
वि.सं. 2081 चला गया। आज चौत्र शुक्ला प्रथमा है। आज विक्रम संवत 2082 का प्रारम्भ हुआ है। आदमी को काल का सुन्दर उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। किसी को कार्य करने के लिए समय और स्थान भी जुड़ा हुआ होता है। आदमी को सहज रूप में ही समय प्राप्त हो रहा है। किसी को खरीदने की आवश्यकता नहीं है। इस सहज मिलने वाले समय का संयमपूर्वक सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने विभिन्न कार्यों को करते हुए भी थोड़ा समय धर्म के लिए निकालने का प्रयास करना चाहिए। अच्छे कार्यों के लिए सलक्ष्य समय निकालने का प्रयास करना चाहिए। मन में शांति एवं प्रसन्नता रखने का प्रयास हो। जरूरी कार्यों को प्राथमिकता देने का प्रयास हो। समय के प्रबन्धन पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। विक्रम संवत 2082 का शुभारम्भ हुआ है। इस वर्ष में आदमी विशेष कार्य करने का चिंतन करे और फिर उस ओर गति करते हुए कार्य को निष्पत्ति तक पहुंचाने का प्रयास हो। इस विक्रम संवत् में अनेक क्षेत्रों में जाना निर्धारित है। इस संवत में ही आचार्यश्री भिक्षु के जन्म त्रिशताब्दी का शुभारम्भ होने वाला है। इन अवसरों का लाभ उठाने का प्रयास हो। इसके साथ ही आचार्यश्री ने नववर्ष के शुभारम्भ के संदर्भ में उपस्थित श्रद्धालुओं को वृहद् मंगलपाठ भी सुनाया।
आचार्यश्री के स्वागत में वर्ष खंडोर आदि ने अपनी प्रस्तुति दी। श्री अशोक खंडोर ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। ‘बेटी तेरापंथ की’ सदस्या श्रीमती पुनीता पारेख आदि बेटियों ने स्वागत गीत का संगान किया।
