– रापर को पावन बना गतिमान हुए ज्योतिचरण
– 13 कि.मी. का विहार कर सेलारी पहुंचे अखण्ड परिव्राजक
– सांदीपनि विद्या मंदिर में तेरापंथ सरताज का एक दिवसीय प्रवास
29 मार्च, 2025, शनिवार, सेलारी, कच्छ (गुजरात)।
रापर में दो दिनों तक अध्यात्म की गंगा प्रवाहित कर शनिवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने मंगल चरण गतिमान किए तो रापरवासियों ने अपने आराध्य के चरणों में अपने कृतज्ञ भाव समर्पित किए। भारत के पश्चिम भाग में अवस्थित कच्छ जिले में ही आचार्यश्री की मंगल यात्रा अभी गतिमान है। दिन-प्रतिदिन तापमान में वृद्धि होती जा रही है और सूर्य की किरणें लोगों और धरती को तपाने लगी हैं। इससे लोग तीखी धूप में निकलने से परहेज करने लगे हैं, किन्तु समता के साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी असीम शांति के साथ गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे।
मार्ग में अनेक लोगों को दर्शन देते, उन पर शुभाशीष की वृष्टि करते प्रबल ताप में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर सेलारी में स्थित सांदीपनि विद्या मंदिर परिसर में पधारे, जहां से संबंधित लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत एवं अभिनंदन किया।
विद्या मंदिर परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्र में कहा गया है कि मानव को समय का मूल्यांकन करना चाहिए। समय कितनी काम की चीज होती है। जो आदमी समय को व्यर्थ गंवा देता है, वह स्वयं उतने अंश में व्यर्थ बन जाता है। समय को सार्थक बनाने वाला उतने समय में सार्थक बन जाता है। मानव को समय का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। कोई समय का दुरुपयोग करता है तो कोई अनुपयोग भी कर सकता है।
समय है, उसमें अच्छा कार्य करने का प्रयास होना चाहिए। आदमी को जागरूकतापूर्वक अपने समय का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। लेखन, पठन-पाठन, प्रवचन श्रवण, सेवा आदि में समय लगाने का प्रयास होना चाहिए। एक रास्ता बताया गया है कि रात्रि का समय ध्यान, जप आदि में लगे, दिन का समय स्वाध्याय में लगे और शेष समय संतों और बड़े अथवा सेवाग्रही संतों की सेवा में लगे तो समय का बहुत अच्छा सदुपयोग हो सकता है। कोई गृहस्थ अपना समय अनावश्यक कार्यों में लगाए, हिंसा, हत्या, चोरी लूट आदि में लगाए तो वह समय का दुरुपयोग हो गया और कोई बिना किसी कार्य के ऐसे ही बैठा रहे तो वह अपने समय का अनुपयोग कर रहा है। आदमी जहां भी रहे, समय का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, अपने समय का प्रबन्धन करने का प्रयास करना चाहिए।
जो बुद्धिमान होते हैं, उनका समय शास्त्र की चर्चा में, धर्म में, अच्छे कार्यों में बीतता है और जो मूर्ख होते हैं, उनका समय लड़ाई-झगड़े, मारपीट, गलत कार्यों में बीत जाता है। सभी को एक दिन में चौबीस घंटे प्राप्त होते हैं। चौबीस घंटे में से दो-दो मिनट निकाल लिया जाए तो 48 मिनट का समय एक सामायिक के लिए प्राप्त हो जाता है। सुबह-सुबह की मंगल बेला में एक सामायिक हो जाए तो जीवन के लिए कल्याणकारी बन सकती है। सूर्याेदय के आसपास और पहले तो एक आध्यात्मिक खुराक की बात हो सकती है। विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थी प्रार्थना आदि में समय लगाते हैं। विद्यार्थियों में प्रार्थना भी होती है। अच्छी भक्ति भावना से प्रार्थना की जाए तो भीतर में अच्छे भावों का संचार हो सकता है। अच्छी तरह अर्हत् वंदना हो, तो आध्यात्मिक लाभ भी प्राप्त हो सकता है।
आदमी को समय से आगे पकड़ने का प्रयास होना चाहिए। कल से विक्रम संवत् 2082 शुरू होने वाला है। कोई पहले से सोचे कि मुझे इस वर्ष का क्या लाभ उठाना है। अच्छा सोचकर उसकी क्रियान्विति हो तो अच्छा फल प्राप्त हो सकता है। इस प्रकार आदमी को समय का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के स्वागत में श्रीमती हंसाबेन खांडोर ने गीत का संगान किया। बालिका वृत्ति व जिंसी दोसी ने भी गीत का संगान किया। श्री अनूपचंद मोरबिया, स्थानीय सरपंच श्री महेश चौधरी, विद्या मंदिर की शिक्षिका नमिता सोनी, समग्र जैन समाज-सेलारी की ओर से श्री धर्मेश दोसी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
