– रापर पर कृपा बरसाने पधारे तेरापंथ सरताज
– 11 कि.मी. का विहार कर महातपस्वी महाश्रमण का रापर में मंगल प्रवेश
– द्विदिवसीय प्रवास हेतु शांतिदूत पहुंचे श्री वर्धमान जैन श्रावक संघ आराधना भवन
– साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने किया उद्बोधित, रापरवासियों ने दी अपनी प्रस्तुति
27 मार्च, 2025, गुरुवार, रापर, कच्छ (गुजरात)।
समुद्र तट के किनारे अवस्थित गुजरात का कच्छ जिला। जो यदा-कदा प्राकृतिक आपदाओं का साक्षी बनता रहता था, लेकिन वर्तमान में वह कच्छ जिला जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी के विहार प्रवास का साक्षी बन रहा है। यह जिला महीने भर से अधिक समय से शांतिदूत के श्रीमुख से प्रस्फुरित होने वाली अमृतवाणी से भी तृप्त बन रहा है। ऐसा सौभाग्य चतुर्मास वाले महानगरों अथवा नगरों, कस्बों को छोड़ दिया जाए तो बहुत कम जिलों को प्राप्त होता है। आचार्यश्री के मंगल सान्निध्य में कच्छ जिले की सीमा में अनेक संघीय कार्यक्रम भी समायोजित हुए हैं। यह कच्छ जिला गुजरात के प्रथम मर्यादा महोत्सव का भी साक्षी बना। वर्तमान समय में भी आचार्यश्री की यात्रा व प्रवास कच्छ जिले की सीमा में ही हो रहा है।
गुरुवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने त्रम्बो से मंगल प्रस्थान किया। आसमान में सूर्य और धरती पर तेरापंथ धर्मसंघ के महासूर्य गतिमान थे। एक संसार के अंधकार का हरण करने को उदियमान थे तो दूसरे मानव के मानस में व्याप्त अहंकार का हरण करने को गतिमान थे। मार्ग में अनेकानेक लोगों को आशीर्वाद प्रदान करते हुए अपने गंतव्य की ओर बढ़ते जा रहे थे। आज आचार्यश्री रापर की ओर बढ़ रहे थे। लगभग 11 किलोमीटर का विहार आचार्यश्री रापर में पहुंचे तो रापरवासियों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। कई स्थान पर लोगों को दर्शन और आशीर्वाद से आच्छादित करते हुए आचार्यश्री रापर के प्रवास के लिए श्री वर्धमान जैन श्रावक संघ आराधना भवन में पधारे। ज्ञातव्य है कि यहां आचार्यश्री का दूसरी बार पदार्पण हुआ है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में यहां महावीर जयंती का आयोजन भी हुआ था। इस बार आचार्यश्री दो दिवसीय प्रवास के लिए पधारे हैं।
इस परिसर में बने वर्धमान समवसरण में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनता को अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्रकार ने एक सुन्दर संदेश देते हुए कहा कि आयुष्य सीमित है तो किस कारण को सामने रखकर मानव अपनी योगक्षेम की ओर ध्यान नहीं दे रहा है। हर प्राणी का आयुष्य एक दिन समाप्त हो जाता है। तीर्थंकर, चक्रवर्ती और वासुदेव जैसे उत्तम पुरुषों का भी आयुष्य कभी न कभी समाप्त हो जाता है। भगवान महावीर को भी लगभग 73 वर्ष की आयु प्राप्त हुई थी। कभी आगे और ज्यादा आयुष्य सीमित हो सकता है। कितने लोग सौ वर्ष को पार करते हैं। इतना सीमित आयुष्य प्राप्त होने पर भी आदमी निश्चिंत बैठा है और अपने अगले जन्म और सुगति के विषय में सोचता ही नहीं है।
यह सिद्धांत पुनर्जन्मवाद से जुड़ा हुआ है। जब तक आत्मा मोक्ष को प्राप्त नहीं हो जाती है, बार-बार जन्म-मृत्यु करती है और चौरासी लाख जीव योनियों में भ्रमण करती रहती है। कषाय और मोहनीय कर्म के कारण पुनर्जन्म होता ही रहेगा। धर्मग्रन्थ की मानें तो आदमी को अशुभ कार्यों को छोड़कर शुभ और अच्छे कार्य को करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी यदि बुरे कार्य नहीं करता तो उसका वर्तमान जीवन भी अच्छा रह सकता है। आचार्यश्री ने कच्छी पूज डालगणीजी के जीवन और उनकी कच्छ की यात्रा के विषय में भी फरमाया। इसलिए आदमी को अपने योगक्षेम पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए और अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने कहा कि कच्छ की यात्रा की सम्पन्नता की बात भी है। आज रापर आना हुआ है। यहां चारित्रात्माओं के चतुर्मास भी हुए हैं। सभी लोगों में धार्मिक चेतना बनी रहे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरांत साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने रापरवासियों को मंगल उद्बोधन प्रदान किया।
आचार्यश्री के पदार्पण के संदर्भ में तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। लब्धि, मिली मेहता ने अपनी प्रस्तुति दी। ‘बेटी तेरापंथ की’ की सदस्याओं ने भी गीत का संगान किया। श्री रमणिक भाई ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
