– शांतिदूत ने जनता को अभयदान देने को किया अभिप्रेरित
– त्रम्बो पूज्यचरणों से बना पावन, आचार्यश्री ने किया 11 कि.मी. का विहार
– स्थानकवासी छह कोटि जैन संघ के भवन में पधारे शांतिदूत
26 मार्च, 2025, बुधवार, त्रम्बो, कच्छ (गुजरात)।
मानव-मानव में सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति जैसे सद्विचार का संप्रसार करने वाले, गांव-गांव, नगर-नगर, कस्बे व महानगर को पावन बनाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, शांतिदूत, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ भारत के गुजरात राज्य की धरा को पावन बना रहे हैं। गुजरात राज्य का कच्छ जिला पूज्यचरणों से लम्बे समय से पावनता को प्राप्त हो रहा है।
बुधवार को प्रातःकाल सूर्याेदय के पश्चात महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के साथ रामवाव से मंगल प्रस्थान किया। मौसम में बढ़ती गर्मी का असर लोगों पर स्पष्ट दिखाई देने लगा है। आसमान में गतिमान सूर्य की किरणें भी अब सूर्याेदय के कुछ समय में धरती को तपाने लगी है। बढ़ती गर्मी जहां आम लोगों को अभी से परेशान करने लगी है, वहीं शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपने समत्व भाव के साथ निरंतर जनकल्याण के लिए गतिमान हैं। शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी करीब 11 किलोमीटर का विहार सम्पन्न कर त्रम्बो में स्थित श्री त्रम्बो स्थानकवासी छह कोटि जैन संघ के भवन में पधारे। संबंधित लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने परिसर में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित श्रद्धालुओं को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि उन जिनों, वीतरागों और तीर्थंकरों को नमन है, जिन्होंने भय को जीत लिया है। वह आदमी बहुत सुखी हो सकता है, जिसको किसी भी प्रकार का भय नहीं होता है। वह पूर्णतया अभय बन जाता है। उसे न मौत का, न रोग का, न अपमान का, न अंधकार का और न ही किसी प्रकार के प्राणी का भय होता है। जो पूर्णतया अभय हो जाता है, वह एक सुख का आयाम प्राप्त कर लेता है। डरना कमजोरी है तो डराना भी गलत बात होती है। आदमी स्वयं डरे नहीं तो किसी दूसरे को डराने से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। अभय होने का एक भाग किसी से डरना नहीं है तो दूसरा भाग किसी दूसरे को डराना नहीं है। दोनों बातें पराकाष्ठा को प्राप्त हो जाएं तो अभय की परिपूर्णता हो सकती है।
आदमी के भीतर मोह, आसक्ति, पदार्थों के प्रति आकर्षण है, तो उनके वियोग का भय भी हो सकता है। जहां मोह है, राग है, ममत्व है, वहां भय हो सकता है। आदमी को किसी से डरना नहीं चाहिए तो किसी को डराना भी नहीं चाहिए, इससे अहिंसा भी परिपुष्ट बन सकती है। आदमी बिना मतलब किसी भी प्राणी को भयभीत न करे। स्वयं भी आदमी किसी से डरे नहीं, समता व शांति में रहने का प्रयास करे। आदमी प्राणियों को अनावश्यक कष्ट देने से बचे तो उसके भीतर अहिंसा की चेतना और ज्यादा पुष्ट हो सकती है तथा इससे अभय का भाव भी पुष्ट बन सकता है।
गृहस्थ भी अनावश्यक हिंसा से बचने का प्रयास करे। पानी के अपव्यय से बचने का प्रयास करना चाहिए। अभय का भाव हो और प्राणियों के प्रति मैत्री की भावना है तो अहिंसा की चेतना और अधिक बलवती बन सकती है।
कच्छ प्रदेश के लोगों के जीवन में त्याग, धर्म, अध्यात्म की पुष्टता हो, लोग अपनी आध्यात्मिक संपत्ति को बढ़ाते रहें। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरांत त्रम्बो ओसवाल समाज व जैन संघ के अध्यक्ष श्री लखमस्सी भाई गाला ने आचार्यश्री के मंगल पदार्पण के संदर्भ में अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी।
