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सुखी जीवन के सूत्र हैं-सहनशीलता, परिश्रम व सेवा : आचार्यश्री महाश्रमण

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– कच्छ के कोने-कोने को पावन बना रहे ज्योतिचरण

– 11 कि.मी. का विहार कर कुंजीसर में शांतिदूत का मंगल पदार्पण

23 मार्च, 2025, रविवार, कुंजीसर, कच्छ (गुजरात)।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ गुजरात की धरा को धन्य बनाने के लिए विहार-प्रवास कर रहे हैं। सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी राष्ट्रसंत दर्शन और मंगल प्रवचन से लाभान्वित हो रहे हैं। रविवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भचाऊ स्थित स्वामीनारायण गुरुकुल से मंगल प्रस्थान किया। गुरुकुल से संबद्ध लोगों ने आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। आचार्यश्री सभी को मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए अगले गंतव्य की ओर बढ़ चले।
मार्ग में अनेक लोगों को मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए लगभग 11 किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी कुंजीसर में स्थित राधा भाई-नेपा भाई आहीर परिवार के निवास स्थान में पधारे। महान संत को अपने आंगन में पाकर आहीर परिवार धन्यता की अनुभूति कर रहा था।
मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए फरमाया कि सुखी बनने के संदर्भ में कुछ सूत्र शास्त्र में बताए गए हैं। सुख आदमी को इष्ट होता है और सुख की प्राप्ति का आदमी प्रयास भी करता है। शास्त्रकार ने सुखी बनने के संदर्भ में आध्यात्मिक सूत्र समूह बताया है। इन सूत्रों में पहला है कि सुकुमारता को छोड़कर अपने आपको तपाओ। कठोर जीवन जीने का अभ्यास करना चाहिए। जिस आदमी को कठोर जीवन जीने का अभ्यास है, थोड़ी कठिनाई आने पर भी वह ज्यादा दुःखी नहीं बनेगा।
अवांछनीय स्तर पर सुविधावादी मनोवृत्ति है और उसे सुविधा न मिले तो वह आदमी दुःखी बन सकता है। आदमी सर्दी, गर्मी और वर्षा को सहने का भी अभ्यास रखे। ये मुख्य तीन ऋतुएं चार-चार महीने के लिए मान्य हैं। गर्मी के मौसम में हमारे साधु-साध्वियों की पैदल यात्रा भी होती है। तेज गर्मी में चलना भी थोड़ी कठोरता की स्थिति होती है। कई चारित्रात्माएं बोझ भी लेकर चलते हैं। गर्मी के मौसम में बोझ साथ लेकर चलना भी एक प्रकार की तपस्या हो जाती है। सर्दी के मौसम में भी चारित्रात्माएं विहार करते हैं। सर्दी को सहते हैं और इस प्रकार कठोरता का जीवन जीते हैं। सर्दी, गर्मी और वर्षा-इन तीनों मौसम को सहन करने का प्रयास करना चाहिए। हालांकि तीनों ऋतुओं की आवश्यकता और उनकी उपयोगिता भी है तो आदमी को स्वयं को इन ऋतुओं को सहन करने का अभ्यास करना चाहिए। कभी अपने बड़ों से डांट आदि भी मिल जाए तो उसे शांति से झेल लेना चाहिए। शारीरिक और मानसिक कठिनाई को शांति से झेल लेना कठोर जीवन की बात हो सकती है।
आदमी सहन करता है, वह सुखी बन सकता है। आदमी को परिश्रमशील होना चाहिए। आलस्य को छोड़कर मानव कार्य करता रहे, अपना योगदान दे, सेवा दे तो भी वह सुखी रह सकता है। जो भी कार्य हो सके, उसे करने का प्रयास करना चाहिए। मानव को अपनी अवांछनीय कामनाओं को कम करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी कठोरता, परिश्रम, सेवा आदि का अभ्यास करे तो उसका जीवन सुखी बन सकता है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरांत श्री राधाभाई आहीर ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।

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