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ईमानदारी जीवन की एक सम्पत्ति : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

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– शांतिदूत के गांधीधाम प्रवास का तेरहवां दिन

– आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को वृत्त के प्रति जागरूक रहने को किया उत्प्रेरित

– मंगलभावना समारोह में श्रद्धालुओं ने भावनाओं को दी अभिव्यक्ति

17 मार्च, 2025, सोमवार, गांधीधाम, कच्छ (गुजरात)।
जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश प्रदान करने वाले, जन-जन को आध्यात्मिक संपोषण प्रदान करने वाले, अखण्ड परिव्राजक जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में भारत के सबसे पश्चिमी छोर पर स्थित गुजरात के गांधीधाम में 5 मार्च से पन्द्रह दिवसीय प्रवास कर रहे हैं। आजादी के बाद सागर किनारे बसे इस शहर में मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी का लम्बा प्रवास यहां प्रवासित जनता को आध्यात्मिकता से उन्नत बनाने वाला रहा है। आचार्यश्री के मंगल सान्निध्य में आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से जनता लाभान्वित हो रही है। ऐसे सौभाग्य को प्राप्त कर गांधीधाम की जनता निहाल प्रतीत हो रही है। आचार्यश्री 19 तक गांधीधाम में विराजमान रहेंगे।
नित्य की भांति सोमवार को ‘महावीर आध्यात्मिक समवसरण’ में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि ईमानदारी जीवन की एक सम्पत्ति होती है। दो शब्द हैं-वृत्त और वित्त। वृत्त अर्थात चरित्र, जिसकी सुरक्षा आदमी को प्रयत्नपूर्वक करनी चाहिए। वित्त अर्थात धन। धन यदि कभी चला भी गया तो इतनी बड़ी बात नहीं होती, किन्तु ईमानदारी अथवा चरित्र चला गया तो मानना चाहिए कि आदमी का सबकुछ चला गया। आदमी धन पर ध्यान दे अथवा न दे, किन्तु अपने चरित्र पर अवश्य ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए।
ईमानदारी के लिए चोरी से मुक्त रहना और झूठ-कपट से बचने की आवश्यकता है। आदमी अपने जीवन में चोरी न करने का संकल्प रखे और झूठ-कपट से बचा रहता है तो मानना चाहिए कि वह आदमी ईमानदार है। बाह्य आकर्षण, गुस्से के कारण और भय के कारण तथा कभी हंसी-मजाक में आदमी झूठ बोल देता है। एक अप्रैल को दूसरे को मूर्ख बनाने का प्रयास किया जाता है, किन्तु जो आदमी ईमानदार है, अथवा जो साधु है, उसे तो इससे भी बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के भीतर सरलता हो, ऋजुता हो तो ईमानदारी और पुष्ट हो सकती है। गृहस्थ के लिए अणुव्रत है और अणुव्रत का एक अवयव है ईमानदारी। चाहे किसी भी धर्म, जाति, वर्ग, संप्रदाय का व्यक्ति हो, ईमानदारी तो सबके लिए मान्य और श्रेयस्कर है। ईमानदारी एक ऐसा मंच है, जहां सबका एकत्व हो सकता है। नास्तिक आदमी भी ईमानदारी और अहिंसा को स्वीकार कर सकता है। अणुव्रत मानवता के लिए कल्याणकारी है।
आदमी किसी भी क्षेत्र में कार्य करे, ईमानदारी सर्वत्र कार्य की चीज है। आदमी को झूठे आरोप लगाने से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। गांधीधामवासियों में धर्म-ध्यान, भक्तिभाव का अच्छा क्रम बना रहे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरांत तेरापंथ महिला मण्डल ने गीत का संगान किया।
गांधीधाम प्रवास के तेरहवें दिन मंगल भावना समारोह के अंतर्गत तेरापंथ महिला मण्डल ने गीत का संगान किया। मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति, भुज के उपाध्यक्ष श्री वाणीभाई, भाजपा के पूर्व विधायक/कच्छ पूर्व अध्यक्ष श्री पंकजभाई मेहता, गुजरात विधानसभा की पूर्व स्पीकर डॉ. निमाबेन आचार्य, गांधीधाम सभा के पूर्व अध्यक्ष श्री त्रिभुवनजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।

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