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धर्म का अंगभूत तत्त्व है अहिंसा : राष्ट्रीय संत आचार्यश्री महाश्रमण

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– गांधीधाम में पूज्य सन्निधि में दिखा लघु भारत का स्वरूप

– देश के विभिन्न राज्यों व समाजों के गणमान्यजनों से गुलजार रही अमर पंचवटी

– आचार्यश्री ने सद्गुणों के विकास का दिया मंगल आशीष

16 मार्च, 2025, रविवार, गांधीधाम, कच्छ (गुजरात)।
अहिंसा शब्द धर्म का एक अंगभूत तत्त्व है। हालांकि शब्द तो अपने आप में जड़ है, किन्तु शब्द अर्थ का संवाहक होता है, इसलिए शब्द का महत्त्व होता है। एक शब्द के कान में पड़ने से प्रसन्नता की अनुभूति और किसी शब्द के कान में पड़ने से खिन्नता की अनुभूति भी हो सकती है। जड़ता का भी अपना प्रभाव पड़ता है। गुरुओं की फोटोज आदि आए तो कितना प्रभाव पड़ता है और वहीं अन्य कोई तस्वीर सामने आए तो उसका अलग ही प्रभाव पड़ता है।
भारतीय सभ्यता और संस्कार अध्यात्म और धर्म से प्रभावित है। धर्म और अध्यात्म से प्रभावित सभ्यता अच्छी होती है। कहीं भी कोई अच्छी बात मिले, उसे ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। जहां भी अच्छाई और सच्चाई हो, उसे वहां से ग्रहण करने और समर्थन देने का प्रयास करना चाहिए। एक छोटा बच्चा भी कोई अच्छा सुझाव दे अथवा अच्छी बात बता दे तो उसे ग्रहण करने में क्या दिक्कत हो सकती है। साहस हो तो शब्दों से समर्थन और उसे स्वीकार करने का भी प्रयास किया जा सकता है।
भारत में कितने-कितने ऋषि-महर्षि अतीत में हुए होंगे और वर्तमान में भी हैं। भारत की विशेषता है कि भारत में अनेकता है, किन्तु उस अनेकता में भी एकता है। भारत में कितनी भाषाएं बोली जाती हैं। यहां सभी भाषाओं के लोग रहते हैं। भारत में अलग-अलग प्रान्तों की अपनी वेशभूषा भी होती है। सभी प्रदेशों के पहनावों में थोड़ा अंतर भी देखने को मिल सकता है। भारत में अनेकानेक संप्रदाय भी हैं। यह सभी भारत की अनेकता है। इस अनेकता में एकता यह है कि सभी भारतीय हैं। भारत राष्ट्र का होना और सभी प्रदेश, भाषा-भाषी लोग भारतीय हैं, यह एकता की बात है। कहा गया है कि जो उदार चरित्र वाले होते हैं, उनके लिए तो सम्पूर्ण वसुधा के लोग अपने परिवार और बन्धु-बांधवों के समान हैं।
अनेक लोगों का एक साथ रहने में भी अहिंसा का प्रभाव होता है। सबके मन में आदमी-आदमी के प्रति मैत्री की भावना हो तो सभी शांति में रह सकते हैं। कहा गया है कि दुःख हिंसा से पैदा होता है। अहिंसा को भगवती कहा गया है। जहां तक संभव हो सके आदमी को किसी भी प्राणी को मारने का प्रयास नहीं होना चाहिए, इससे भीतर में अहिंसा की चेतना पुष्ट हो सकती है। सभी में अहिंसा धर्म का प्रभाव रहे। यह सभी से सुख प्रदान करने वाली होती है।
हमारा गांधीधाम का प्रवास भी सम्पन्नता की ओर बढ़ गया है। भारतीय सभ्यता और संस्कार रहें। अहिंसा, नैतिकता, ईमानदारी, संयम रूपी संस्कार पूरे विश्व के लोगों में बना रहे तो उनकी आत्मा भी अच्छी रह सकती है। उक्त पावन और कल्याणकारी प्रेरणा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रविवार को ‘महावीर आध्यात्मिक समवसरण’ में उमड़ी जनता को प्रदान की।
तेरापंथी सभा की ओर से श्री बजरंग बोथरा, गोरखा समाज-कच्छ के श्री विशाल थापा, श्री जाट राजस्थान समाज-गांधीधाम की ओर से श्री परसाराम चौधरी, उत्तर भारतीय समाज की ओर से श्री हमेचंद्र यादव, आंध्रा समाज-गांधीधाम की ओर श्रीनिवासनजी, विश्नोई समाज की ओर से श्री हनुमानजी विश्नोई, बीएचएफ कमांडेंट श्री विजयकुमार, आहीर समाज की ओर से श्री नवीनभाई आहीर ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। श्री जितेन्द्र सेठिया ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। आचार्यश्री के मंगल सान्निध्य में भारत के अनेक क्षेत्रों और समाज के लोगों की विशेष उपस्थिति से ऐसा लग रहा था मानों राष्ट्रीय संत की सन्निधि में छोटा राष्ट्र ही उमड़ आया हो।
आचार्यश्री ने इस संदर्भ में मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि आज विभिन्न व्यक्तियों की विशेष उपस्थिति लग रही है। सभी में एकता रहे। सभी में अहिंसा, सच्चाई, संयम जैसे सद्गुण रहें तो जीवन अच्छा हो सकता है। आचार्यश्री ने बोथरा परिवार को आध्यात्मिक संबल प्रदान किया।

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