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युवाशक्ति की सद्गुण अनुरक्ति कल्याणकारी : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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गांधीधाम में बृहद् युवा सम्मेलन का आयोजन

– युवाओं को आचार्यश्री ने सद्गुणों से युक्त जीवन की दी प्रेरणा

15 मार्च, 2025, शनिवार, गांधीधाम, कच्छ (गुजरात)।
गांधीधाम में प्रवासित जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल सान्निध्य में निरंतर श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है और नित नए कार्यक्रमों की समायोजना भी हो रही है, जिसके माध्यम से गांधीधाम का जन-जन लाभान्वित हो रहा है। शनिवार को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के पावन सान्निध्य में तथा स्थानीय तेरापंथी सभा के तत्त्वावधान में बृहद् युवा सम्मेलन का समायोजन किया गया, जिसमें गांधीधाम के तमाम युवाओं की विशाल उपस्थिति थी।
समुपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि सत्संग की बात दुनिया में बताई जाती है। संत पुरुषों का संग करने, सज्जनों का संग करने और ज्ञानियों का संग करने से सद्गुणों का विकास हो सकता है। संतों का जीवन त्यागमय, संयममय है और ज्ञान भी है तो सोने पे सुहागा वाली बात हो सकती है। संतों के संपर्क में रहने से कुछ सुनने को मिल सकता है। सुनने से कुछ अच्छी खुराक मिल सकती है। ज्ञानामृत का पान करने से आत्मा को खुराक मिल सकती है। त्याग, संयम और ज्ञानामृत का पान करने से आत्मा को संपोषण प्राप्त हो सकता है।
युवाशक्ति और सद्गुण अनुरक्ति हो तो कल्याण की बात हो सकती है। बीच की अवस्था जवानी की होती है। यह अवस्था कार्य करने के लिए बहुत अनुकूल हो सकती है। बच्चे में परिपक्वता की कमी और वृद्धावस्था में शरीर में अक्षमता की बात हो सकती है। युवावस्था में शरीर सक्षम और ज्ञान, अनुभव की परिपक्वता होती है तो युवा आदमी ज्यादा कार्य कर सकता है। युवाशक्ति में सद्गुणों के प्रति अनुराग रखने का प्रयास करना चाहिए। ईमानदारी के प्रति अनुराग हो। जो भी व्यापार-धंधा करें, उसमें ईमानदारी और पारदर्शिता रखने का प्रयास करना चाहिए। चोरी एवं झूठ से बचने का प्रयास होना चाहिए। शराब आदि नशीली चीजों के सेवन से बचकर रहने का प्रयास करना चाहिए।
युवाओं के भीतर ज्ञान का बहुत अच्छा विकास होता रहे। परिश्रम और अध्ययन से जो डिग्री ली जाती है, उसका बड़ा महत्त्व है। अनेक प्रकार के प्रोफेशनल बने युवा भी कार्यकारी हो सकते हैं। युवाओं को बुद्धि का प्रयोग समस्याओं के समाधान में लगाने का प्रयास करना चाहिए न कि किसी कार्य को उलझाने में करना चाहिए। बुद्धि का सदुपयोग भी सद्गुण ही है। परिवार में भी आपसी मनमुटाव नहीं होना चाहिए। युवा तो धार्मिक-आध्यात्मिक कार्यों में भी अपनी अच्छी सेवा देने वाले हो सकते हैं। युवा मार्ग सेवा भी किया करते हैं। अनेक रूपों में सेवा कार्य हो सकता है। हमारे तेरापंथ में तेरापंथ युवक परिषद युवकों की संस्था है। इनमें अच्छी सेवा, संस्कार और संगठन की भावना बनी रह सकती है। युवा पीढ़ी में अच्छे संस्कार, सद्गुण रहें और धार्मिक-आध्यात्मिक संस्कार बने रहें, यह काम्य है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व बृहद् युवा सम्मेलन कार्यक्रम के अंतर्गत मुनिश्री योगेशकुमारजी व मुनिश्री कुमारश्रमणजी ने समुपस्थित युवाओं को संबोधित किया। स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री अशोकभाई सिंघवी, तेरापंथ युवक परिषद के मंत्री श्री रोहित ढेलड़िया, पूर्व अध्यक्ष श्री राकेश सेठिया, श्री राजस्थान जैन नवयुवक मण्डल-गांधीधाम के मंत्री श्री मुकेश पारेख, बागड़ बे चौबीसी के प्रतिनिधि श्री धर्मेश दोशी, महावीर इण्टरनेशनल यूथ के अध्यक्ष श्री मुकेश तातेड़, आयकर कमिश्नर श्री मिनिस्टर कोलागाछी, श्री करोड़ीमल गोयल, गुजरात विधानसभा की पूर्व स्पीकर डॉ. निमाबेन आचार्य तथा श्री जीसी संघवी ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्री आशीष ढेलड़िया ने अपनी प्रस्तुति दी।

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