– जीवन का कुछ समय धर्म में लगाने को आचार्यश्री ने किया उत्प्रेरित
– साध्वीवर्याजी ने भी गांधीधामवासियों को किया उद्बोधित
– अनेक गणमान्यजनों ने भी आचार्यश्री अभ्यर्थना में दी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति
12 मार्च, 2025, बुधवार, गांधीधाम, कच्छ (गुजरात)।
आदमी जन्म लेता है और एक दिन अवसान को भी प्राप्त हो जाता है। आदमी अकेला ही आता है, अकेला कर्म करता है, अकेला ही कर्मों का बंधन करता है, अकेला ही उसका फल भोगता है और एक दिन अकेला ही चला भी जाता है। यह एकत्व की बात है। साथियों के साथ चलना भी हो सकता है, लेकिन साथी न हों तो आदमी अकेला भी चल सकता है। दूसरे साथ हो सकते हैं, लेकिन निश्चय में तो आत्मा अकेली ही होती है। संगी-साथी, रिश्तेदार आदि तो सब व्यवहार है, निश्चय में आदमी अकेला ही होता है। अपनत्व, ममत्व, मोह आदमी को दुःख की ओर ले जाने वाला बन सकता है। आदमी धन-संपत्ति की दृष्टि से भी मेरा है, मेरा है, कहता है। मोह, आसक्ति आदि के कारण आदमी ऐसा करता है। कई बार आदमी लालसा, तृष्णा के कारण अपने के अलावा दूसरों की चीज को भी हड़प लेता है। वह दूसरों की चीजों का भी हरण कर लेता है। उदारमना व्यक्ति का चिंतन हो सकता है कि जो तेरा है वह तेरा है और जो मेरा है, वह भी तेरा ही है, लेकिन साधु का चिंतन होता है कि ना कुछ तेरा, ना कुछ मेरा, दुनिया रैन-बसेरा।
इसलिए आदमी यह विचार करे कि मैं अकेला हूं। यह शरीर भी अपना नहीं है। जिस प्रकार सोना मिट्टी से मिलाजुला रहता है, किन्तु सोना सोना है और मिट्टी मिट्टी है। इसी प्रकार आत्मा और शरीर एक-दूसरे से मिले-जुले से हो सकते हैं, लेकिन आत्मा भिन्न है और शरीर भिन्न है। नास्तिक विचारधारा जीव और शरीर को एक ही मान सकती है। आत्मा मूलतः अपने आप में अकेले होती है।
जीव अकेला ही कर्मों का बंध करता है और अकेला ही उसका भोग भोगता है। आत्मा स्वयं के पापों से अपना बहुत नुक्सान कर लेती है। जब आदमी पर दुःख आता है तो कोई अपना, प्रिय, मित्र, बन्धु या परिजन भी दुःख प्रकट कर सकते हैं, लेकिन कोई अपने साथी का कष्ट भी नहीं बांट सकते हैं।
इसलिए आदमी को सावधान रहना चाहिए कि ऐसा कोई पापकर्म बंध न हो जाए, जिसका परिणाम कष्ट के रूप में भोगना पड़े। इसलिए आदमी को अपनी निर्मलता पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। आदमी कदाचार, भ्रष्टाचार, दुराचार आदि से बचने का प्रयास करे और सदाचार के रास्ते पर चलने का प्रयास करना चाहिए। धोखाधड़ी, हिंसा, हत्या, चोरी, लोभ, लालच आदि से बचने का प्रयास करे। आदमी जितना भी कमाएगा, वह ज्यादा से ज्यादा इस जीवन तक साथ रह सकता है। इसलिए आदमी को यह चिंतन करने का प्रयास करना चाहिए कि धन के लिए कितना समय लगता है और धर्म के लिए कितना समय लगता है।
इसलिए कहा गया है कि अट्ठावन घड़ी काम की, दो घड़ी राम की, अट्ठावन घड़ी कर्म की, दो घड़ी धर्म की, अट्ठावन घड़ी जीव, दो घड़ी शिव की। गृहस्थ जीवन में चलाने के लिए काम भी करना हो सकता है, लेकिन थोड़ा समय भी धर्म के लिए लगाने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, जीवन का व्यवहार अच्छा रखने का प्रयास करना चाहिए। दुकानदारी भी करनी हो तो दुकानदार को ईमानदार होना चाहिए। आदमी को अपने व्यवहार में भी धर्म को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। उक्त कल्याणकारी पावन पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को गांधीधाम के ‘महावीर आध्यात्मिक समवसरण’ में उपस्थित जनता को प्रदान की।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरांत साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने गांधीधामवासियों को उद्बोधित किया। एडिशनल डेवलपमेंट कमिश्नर जीसीटी श्री विकास जोशी, एरिया रेलवे मैनेजर श्री आशीष धानिया, श्री राजस्थान माहेश्वरी समाज की ओर से श्री विवेक मिलाप, श्री राजस्थान राजपूत समाज के मंत्री श्री इंद्रजीत सिंह व श्री बाबूलाल सिंघवी ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
