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161वें मर्यादा महोत्सव का आयोजन : जोरहाट

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मुनिश्री प्रशांत कुमार जी, मुनिश्री कुमुद कुमार जी के सान्निध्य में 161वें मर्यादा महोत्सव का आयोजन जोरहाट सभा द्वारा हुआ। जनसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री प्रशांत कुमार जी ने कहा कि पूरी दुनिया में एकमात्र तेरापंथ धर्मसंघ है जो मर्यादाओं का महोत्सव मनाता है। यह अपने आप में अनूठा आकर्षक एवं प्रेरणादायक महोत्सव है। आज एक ओर जहां हर क्षेत्र में अनुशासन और मर्यादाओं का भंग हो रहा है, वहीं तेरापंथ धर्मसंघ मर्यादा पालन में अपनी कटिबद्धता प्रदर्शित करते हुए गरिमापूर्ण ढंग से मर्यादाओं का सम्मान करता है। अनुशासन ही तेरापंथ का मूल मंत्र है। जैन आगमों के अनुसार मुनि चर्या का पालन करते हुए तेरापंथ संघ के साधु-साध्वी और संपूर्ण संघ ने विकास के अनेक नये आयाम खोले हैं। इसका मूल आधार है एक गुरु का अनुशासन। आचार्य भिक्षु आत्मा साधना के लिए पूर्णतया समर्पित थे। साधना के मार्ग में आने वाली बाधाओं को, कष्टों को झेलना उन्हें मंजूर था लेकिन सत्य की जो राह पकड़ी उससे हटना स्वीकार नहीं था। आचार्य भिक्षु ने मर्यादाओं को किसी पर थोपा नहीं सबकी सहर्ष स्वीकृति होने के बाद ही इन मर्यादाओं को संघ में लागू किया। आचार्य भिक्षु अपना कोई नया संघ बनाना नहीं चाहते थे, किंतु जिस राह पर वे चले लोग स्वतः उनके साथ चल पड़े और संघ निर्मित हो गया। जनसाधारण ने ही इस संघ का नामकरण कर दिया तब आचार्य भिक्षु ने इसी नामकरण को सहज स्वीकार करते हुए उसे नया अर्थ प्रदान किया। तेरापंथ धर्मसंघ में सेवा को भी अत्यधिक महत्व दिया गया। शारीरिक दृष्टि से अक्षम अथवा बीमार, वृद्ध साधु-साध्वी की सेवा की व्यवस्था यहां बेजोड़ है। आज्ञा, मर्यादा और सेवा में तेरापंथ संघ में शानदार परंपरा है। जो इस संघ को महानता के शिखर पर पहुंचने वाली है।
मुनिश्री कुमुद कुमार जी ने कहा कि अनुशासन और मर्यादा का पालन ही मर्यादा का सबसे बड़ा सम्मान है। तेरापंथ संघ में अनुशासन को सर्वाेपरि महत्व दिया गया। लगभग 260 वर्ष पूर्व आचार्य भिक्षु ने जो मर्यादाएं बनाई उनमें आज तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ और उनका पालन करने को पूरा संघ तत्पर रहता है। तेरापंथ संघ में अहंकार और ममकार विसर्जन की जन्म घुट्टी मिलती है। यही वजह है कि शिष्य-शिष्या बनाने की होड़ से मुक्त होकर तेरापंथ धर्मसंघ साधना की गहराई और विकास के शिखरों को छूने में सफल रहा है। एक गुरु और एक विधान यह तेरापंथ की पहचान है। जहां अनुशासन और मर्यादा निष्ठा होती है वहीं शुद्ध साधना हो सकती है। आचार्यश्री का निर्णय एवं उनकी दृष्टि ही सर्वाेपरि होते हैं।
श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन छतरसिंह चौरड़िया ने किया। सभा के सदस्यों के मंगलाचरण से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। स्वागत वक्तव्य सभा अध्यक्ष रतनलाल भंसाली ने दिया। जोरहाट महिला मंडल, तेरापंथ युवक परिषद जोरहाट, ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी, डीमापुर महिला मंडल, डीफू महिला मंडल, पूर्वाेत्तर सभा मंत्री जीवन सुराणा, गुवाहाटी सभा अध्यक्ष बाबूलाल सुराणा, गुवाहाटी तेरापंथ युवक परिषद अध्यक्ष सतीश भादाणी, पीपीएफ अध्यक्ष पंकज भूरा, प्रेम छाजेड़ सिलचर, दीपक बैद खारुपेटिया, प्रकाश बैद तिनसुकिया, अनिल ओसवाल सीलापथार, सुरेश धारीवाल तेजपुर, रमेश सुराणा नौगांव, चंदन बोथरा ढेकुयाजुली, उपासिका बहनों ने विचारों एवं गीत की प्रस्तुति दी। आभार ज्ञापन सभा मंत्री धीरज कुंडलिया ने किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनिश्री कुमुद कुमार जी ने किया। संघगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम में 22 से अधिक क्षेत्रों से श्रावक समाज ने सहभागीता दर्ज करवाई।

 

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