आपने मानव मंदिर को धन्य कर दिया : मुनि दिनेशचन्द्रजी महाराज
– मानवता के मसीहा महाश्रमणजी का मानव मंदिर में मंगल पदार्पण
– 3 कि.मी. का विहार कर मानव मंदिर में दिनेशचन्द्र मुनि से हुआ आध्यात्मिक मिलन
25 फरवरी, 2025, मंगलवार, बिदड़ा, कच्छ (गुजरात)।
कच्छ की धरा पर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी जैन समाज के अनेक आमनायों के संतों से आध्यात्मिक मिलन कर रहे हैं। मंगलवार को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने तलवाना से प्रातःकाल की मंगल बेला में प्रस्थान किया। लगभग तीन किलोमीटर के अल्प विहार के उपरांत ही आज आचार्यश्री बिदड़ा में स्थित मानव मंदिर में पधारे, जहां स्थानकवासी आठ कोटि मोटी पक्ष के मुनि दिनेशचन्द्रजी ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया। जैन शासन की दो धाराओं का आध्यात्मिक मिलन श्रद्धालुओं को अत्यंत आह्लादित करने वाला था।
आज के मंगल प्रवचन कार्यक्रम में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के साथ मुनि दिनेशचन्द्रजी भी विराजमान थे। मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालु जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आत्मा के चार प्रकार होते हैं-परमात्मा, महात्मा, सदात्मा और दुरात्मा। परमात्मा हम सिद्ध भगवंतों को मान लें। जहां न शरीर है, न वाणी है, न मन है, निरंजन, निराकार रूप में होते हैं। ऐसी अनंत सिद्ध आत्माएं सिद्धशीला पर विराजमान होती हैं। महात्मा जो घर-गृहस्थी आदि का त्याग कर धर्म, ध्यान, साधना, आराधना, जप, तप आदि में लगे रहते हैं, वे महात्मा होते हैं। वैसे लोग गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी हिंसा, हत्या, चोरी, छल, कपट, झूठ आदि कृत्यों से बचे रहते हैं, जो किसी का बुरा नहीं करते, वे सदात्मा होते हैं। हिंसा, हत्या, चोरी, छल, कपट, झूठ, बेईमानी में लगी हुई आत्माएं दुरात्माएं होती हैं।
आदमी अपने जीवन में यह प्रयास करे कि वह अपनी आत्मा को परमात्मा, महात्मा भले न बनाए, किन्तु दुरात्मा भी न बनने दे। वह प्रयास करे कि उसकी आत्मा सदात्मा बन सके। हिंसा, चोरी, लूट, छल, कपट, माया आदि से बचने का प्रयास करते हुए सदात्मा बनने का प्रयास करे। मोहयुक्त आदमी विषयों में फंसकर दुरात्मा बन सकता है। आदमी को विषयों से, राग-द्वेष की भावना से दूर रहना, सेवा और सहयोग की भावना रखना, हिंसा, हत्या, मारपीट आदि से आदमी को बचने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार उसकी सज्जनता का विकास हो सकता है, वह सदात्मा बना रह सकता है। आदमी को किसी भी प्रकार के नशे से बचने का प्रयास करना चाहिए। सज्जनता का व्यवहार हो तो जीव सदात्मा भी बन सकता है। पदार्थों, विषयों, परिवार आदि के अत्यधिक व्यामोह से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। आसक्ति से बचने का प्रयास करना चाहिए।
दुर्जन और सज्जन को देखने में कोई अंतर दिखाई नहीं देता, लेकिन जो अंतर होता है, वह आचरणों का, व्यवहार का, धर्म का होता है। आदमी का व्यवहार अच्छा है तो आदमी सज्जन है। नम्रता, क्षमाशीलता, भक्ति, सबके प्रति सम्मान की भावना है, वह आदमी सज्जन होता है। आदमी को अपने भीतर सज्जनता का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। अणुव्रत आन्दोलन सज्जन आदमी बनाने का मानों आन्दोलन है। भगवान महावीर से जुड़ा हुआ हमारा जैन शासन है। जहां अहिंसा, संयम व तप की बात है, समता की बात है। आदमी को दुरात्मा बनने से बचने तथा सदात्मा और कभी महात्मा भी बनने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि कच्छ की यात्रा के दौरान आज यहां मानव मंदिर में आना हुआ है। कई दिनों पहले से दिनेशचन्द्रजी महाराज का नाम सुन रहा था। आज आपसे मिलना हो गया। अच्छी साधना, धर्म-ध्यान आदि चलता रहे।
मंगल प्रवचन के उपरांत आचार्यश्री के स्वागत में श्री भावेन भाई संघवी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानकवासी आठ कोटि मोटी पक्ष के मुनि दिनेशचन्द्रजी ने भी आचार्यश्री के स्वागत में कहा कि आज अपनी धवल सेना के साथ आचार्यश्री महाश्रमणजी का आगमन हुआ है। बहुत प्रेम, भावना और श्रद्धा भाव से आपका स्वागत करता हूं। आज आपने मानव मंदिर की धरा को धन्य कर दिया है।
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