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भक्ति और समर्पण की भावना का हो विकास : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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दो दिवसीय प्रवास हेतु मांडवी में पधारे तेरापंथ के गणराज

– 10 कि.मी. का विहार कर शांतिदूत पहुंचे मांडवी के जैन पुरी में

– श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य का जुलूस के साथ किया भव्य स्वागत-अभिनंदन

22 फरवरी, 2025, शनिवार, मांडवी, कच्छ (गुजरात)।
गुजरात के कच्छ जिले में गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी शनिवार को अपनी धवल सेना के साथ कोडाय में स्थित बहत्तर जिनालय से मंगल प्रस्थान किया। कच्छ के इस क्षेत्र की समुद्र से निकटता के कारण निरंतर हवा वेग से चलती रहती है, जिस कारण काफी मात्रा में पवनचक्कियां स्थापित की गई हैं, जो इस क्षेत्र में ऊर्जा उत्पादन का अच्छा स्रोत बनी हुई हैं। आचार्यश्री आज कच्छ के मांडवी नगर में पधार रहे थे। मांडवीवासी अपने आराध्य के अभिनंदन को आतुर नजर आ रहे थे। लगभग दस किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री जैसे ही मांडवी के निकट पधारे, श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का भावभरा अभिनंदन किया। इस क्षेत्र में रहने वाली ‘बेटी तेरापंथ की’ आयाम से जुड़ी बेटियों ने भी आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया। स्वागत जुलूस के साथ युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी मांडवी के दो दिवसीय प्रवास हेतु जैन पुरी में पधारे। मांडवी नगर दूर-दूर तक फैले समुद्र तट के लिए जाना जाता है। मांडवी में नाव निर्माण का कार्य भी होता है। रुकमावती नदी मांडवी में ही अरब सागर में गिरती है।
जैन पुरी स्थान में आयोजित मंगल प्रवचन में उपस्थित जनता को तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए फरमाया कि एक श्लोक में चौबीस तीर्थंकरों को नमन किया गया है। नमन में भक्ति निहित होती है। वीतराग प्रभु के प्रति भक्ति और सिद्धों के प्रति भक्ति होती है। भक्ति और समर्पण का भाव व्यक्ति में आ जाता है तो आदमी कठिन कार्य करने को भी तैयार हो जाता है। नमस्कार महामंत्र में नमस्कार किया गया है। इसमें अर्हतों को, सिद्धों को नमस्कार किया जाता है। इसमें आचार्यों को, उपाध्यायों को नमस्कार किया गया है और लोक के सर्व साधुओं को नमस्कार किया गया है। इन पांचों से-अर्हता, सिद्धि, आचार, ज्ञान और साधना पांचों चीजों को सीखा जा सकता है। पांचों में वीतरागता आंशिक या पूर्णतया सन्निहित होती है। पांचों के केन्द्र में वीतरागता विद्यमान है।
ऐसा यह नमस्कार महामंत्र है। पूज्यों को नमन करने से अहंकार का विलय हो जाता है। नमन में भक्ति होती है। जब अंतर्मन में अपने आराध्य के प्रति भक्ति होती है तो उससे कर्म निर्जरा भी हो सकती है और कुछ प्राप्त भी हो सकता है। आदमी को अपने आराध्य के प्रति भक्ति तो रखनी ही चाहिए, अपने सिद्धांतों के प्रति भी भक्ति रखने का प्रयास करना चाहिए। यथार्थ अर्थात् सत्य के प्रति भक्ति और समर्पण की भावना होनी चाहिए। सच्चाई के प्रति भक्ति होना बहुत बड़ी बात होती है। सच्चाई के प्रति समर्पण का भाव होना चाहिए। आदमी को यह संकल्प कर लेना चाहिए कि सच्चाई के प्रति निष्ठावान रहूंगा। साधुओं को सर्व मृषावाद का विरमण होता है। सच्चाई के प्रति भी भक्ति का भाव होना चाहिए।
भगवान महावीर से संबद्ध यह जैन शासन है। हम जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ से जुड़े हुए हैं। हमारे धर्मसंघ के प्रथम गुरु आचार्यश्री भिक्षु हुए। आज से 264 वर्ष पूर्व परम पूज्य आचार्यश्री भिक्षु द्वारा प्रारम्भ किया गया। हमारे धर्मसंघ के तीसरे आचार्यश्री रायचन्दजी स्वामी कच्छ में पधारे और यहां मांडवी में छह दिनों का प्रवास किया था। करीब 192 साल पूर्व की बात है। 192 वर्ष बाद मेरा आना हुआ है। इस बार मांडवी आने का योग बना। मांडवी में आज हमारा आना हुआ है। मांडवी का अपना इतिहास भी तेरापंथ से जुड़ा हुआ है। यहां की जनता में धार्मिक निष्ठा बनी रहे। जीवन में धर्म अमूल्य संपत्ति होती है। सबसे बड़ी चीज धर्म होती है। आदमी को धर्म की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। त्याग, तपस्या, श्रुत आदि का विकास होता रहे तो बहुत अच्छी बात हो सकती है। आदमी को अपनी श्रद्धा, सच्चाई और भक्ति रखने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने आठ कोटि की साध्वियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। मांडवी के विधायक श्री अनिरुद्ध भाई दवे ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। ममालतार श्री गोकलानीजी, स्थानीय संघ प्रमुख श्री राजूभाई दोसी ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत किया।

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