Jain Terapanth News Official Website

इंद्रियों के संयम व सदुपयोग से जीवन को बनाएं सुफल : महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण

Picture of Jain Terapanth News

Jain Terapanth News

– शांतिदूत के नागरिक अभिनन्दन में जुटे भुज के अनेकों गणमान्य

– विधायक, नगराध्यक्ष आदि सहित अनेक गणमान्यजनों ने दी अभिव्यक्ति व प्राप्त किया आशीर्वाद

– नगर में स्थापित हो सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की सूत्रत्रयी-आचार्यश्री महाश्रमण

1 फरवरी, 2025, शनिवार, भुज, कच्छ (गुजरात)।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी गुजरात के प्रथम मर्यादा महोत्सव के लिए भुज में विराजमान हो चुके हैं। अपने आराध्य के मंगल सान्निध्य में मर्यादा के इस महामहोत्सव को मनाने के लिए साधु, साध्वियां, समणियां, मुमुक्षु बाइयां तथा हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकाएं भी भुज में पहुंच रहे हैं। आचार्यश्री से इस सौभाग्य को प्राप्त कर भुजवासी हर्षविभोर बने हुए हैं। शनिवार को सूर्याेदय से पूर्व ही आचार्यश्री के मंगल सान्निध्य में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। प्रातःकाल के मंगलपाठ आदि के बाद भी मानों श्रद्धालु अपने सुगुरु के सान्निध्य को छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे। भुज का पूरा वातावरण भक्ति, आस्था, उत्साह के रंग में रंगा हुआ दिखाई दे रहा है।
‘कच्छी पूज समवसरण’ में निर्धारित समय पर तेरापंथाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंचासीन होने से पूर्व ही श्रद्धालुओं की उपस्थिति से प्रवचन पंडाल खचाखच भर चुका था। आज भुज नगर की ओर से आचार्यश्री के नागरिक अभिनंदन का उपक्रम भी समायोजित था।
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि एक आगम में इन्द्रियों व मन के बारे में एक विशद विश्लेषण प्राप्त होता है। मनुष्य शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रियां होती हैं। पांच कर्मेन्द्रियां भी होती हैं। ज्ञानेन्द्रियों से आदमी को ज्ञान प्राप्त होता है। ज्ञानेन्द्रियां भोग में भी काम आती हैं। इसमें श्रोत्रेन्द्रिय एक ज्ञानेन्द्रिय है। कान के माध्यम से आदमी सुनता है और सुनकर आदमी ज्ञान प्राप्त करता है। चक्षुरेन्द्रिय आदमी देखता है और उससे ज्ञान प्राप्त करता है। नाक से सूंघकर गंध की जानकारी करते हैं। जिह्वा से आदमी रस आदि की जानकारी करता है। स्पर्श (त्वचा) के द्वारा स्पर्श का ज्ञान होता है। ये इन्द्रियां मानव जीवन के लिए अति महत्त्वपूर्ण हैं। बाह्य जगत की जानकारी में मानव की सहायता इन्द्रियां करती हैं। पांच इन्द्रियों वाला प्राणी विकसित होता है। भीतरी जगत के ज्ञान में भी इन्द्रियां सहायक बनती हैं, किन्तु भीतरी ज्ञान मूलतः चेतना से प्राप्त होता है।
मानव जीवन के मूल हैं दो तत्त्व-शरीर और आत्मा। पूरी दुनिया चेतन और अचेतन में समाहित होती है। आत्मा और शरीर का मिश्रण जीवन है और आत्मा एवं शरीर का वियोग मृत्यु तथा आत्मा एवं शरीर का हमेशा के लिए वियोग हो जाना मोक्ष होता है। मानव जीवन को दुर्लभ बताया गया है। 84 लाख जीव योनियों में मनुष्य जन्म प्राप्त कर लेना कठिन होता है। आदमी को इस दुर्लभ मानव जीवन का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। यह जीवन शाश्वत नहीं है, इसकी एक सीमा होती है तो आदमी को इसका अच्छे से अच्छा उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। यह मानव जीवन अनिश्चित है तो आदमी को ऐसा कार्य करना चाहिए कि आदमी दुर्गति में न जाए। इसके लिए शास्त्र में एक प्रेरणा दी गई कि आदमी को अपनी इन्द्रियों का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए बल्कि इनका समुचित सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए और इन्द्रिय विषयों में राग-द्वेष करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। यह समता की साधना पुष्ट होती है तो मानव जीवन सुफल बन सकता है। मानव जीवन में सादगी हो और विचार ऊंचे हों तो आदमी के जीवन की बहुत बड़ी संपदा होती है। पैसे की उपयोगिता इस जीवन तक हो सकती है, किन्तु धर्म की पूंजी आगे के जीवन में भी काम आती है। इसलिए आदमी को अपनी इन्द्रियों का संयम और सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आगे कहा कि हमारे भुज आगमन और प्रवास का संबंध मर्यादा महोत्सव से जुड़ा हुआ है। मर्यादा महोत्सव इसलिए होता है कि नियम और विधान के प्रति निष्ठा रहे। इस प्रकार के संस्कारों को संपोषित करने में यह समय और महोत्सव सहायक बन सकता है। जीवन में अनुशासन-मर्यादा रहे और इन्द्रियों का संयम रहे, यह काम्य है।
आचार्यश्री महाश्रमण जी के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुख्यमुनिश्रीे महावीरकुमार जी ने भी समुपस्थित जनता को उत्प्रेरित किया। आचार्यश्री के नागरिक अभिनंदन समारोह में सर्वप्रथम कच्छ जिले के कलेक्टर श्री अमित अरोड़ा ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि मैं पूरे जिले की ओर से आचार्यश्री का खूब-खूब स्वागत करता हूं। भुज की नगराध्यक्ष श्रीमती रश्मिबेन सोलंकी, भुज के विधायक श्री केशु भाई पटेल, पूर्व विधायक श्री पंकजभाई मेहता, गुजरात विधानसभा की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती निमाबेन आचार्य, बुलियन मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री भद्रेश भाई दोसी व चेम्बर्स ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष श्री अनिल भाई गौर ने शांतिदूत के स्वागत में अपनी-अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। उपस्थित समस्त गणमान्यजनों ने शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी को भुज नगर की प्रतीकात्मक चाबी अर्पित की।
इस संदर्भ में आचार्यश्री ने आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में मर्यादा का बहुत महत्त्व है। यह चाबी सम्मान का प्रतीक है। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति ऐसी सूत्रत्रयी है, जिसके माध्यम से नगर में सर्वत्र सौहार्द रह सकता है। मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री शांतिलाल जैन, श्री प्रभुभाई मेहता ने भी अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी।

इस पोस्ट से जुड़े हुए हैशटैग्स