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सुनने से बदल सकती है जीवन की दशा व दिशा : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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– महाप्रज्ञनगर में पधारे महाप्रज्ञ के पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण

– 2.5 कि.मी. का विहार कर नवनिर्मित तेरापंथ भवन में विराजे शांतिदूत

– महाप्रज्ञनगरवासियों ने दी अपनी भावनाओं को प्रस्तुति

30 जनवरी, 2025, गुरुवार, महाप्रज्ञनगर, कच्छ (गुजरात)।
जन-जन के मानस को आध्यात्मिक अभिसिंचन प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ माधापर में दो दिवसीय प्रवास सुसम्पन्न कर महाप्रज्ञनगर की ओर गतिमान हुए। मर्यादा के महामहोत्सव ‘मर्यादा महोत्सव’ के लिए अपने आराध्य के मंगल सान्निध्य में श्रद्धालु जनता ही नहीं, अपितु साधु-साध्वीवृंद के अलावा समणीवृंद व मुमुक्षुवृंद भी उपस्थित होने लगे हैं। आज के विहार मार्ग से इस महामहोत्सव के लिए भुज का निर्धारित स्थान की ज्यादा दूरी नहीं रह गई है। इसलिए आचार्यश्री के विहार में श्रद्धा का ज्वार अभी से दिखाई देने लगा है। आज विहार के दौरान गुरु के सान्निध्य में उपस्थित मुमुक्षु बहनों ने भी आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
स्थान-स्थान पर लोगों को दर्शन देते और सभी की भावनाओं को स्वीकार करते हुए आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ महाप्रज्ञनगर में स्थित नवनिर्मित तेरापंथ भवन में पधारे। आचार्यश्री से मंगलपाठ का श्रवण कर स्थानीय श्रद्धालुओं ने इस नवीन तेरापंथ भवन का लोकार्पण किया।
प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालु जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य देह औदारिक शरीर वाला होता है। वैसे मनुष्य के पास पांचों शरीर भी हो सकते हैं। सामान्य मनुष्य औदारिक शरीर वाला होता है। इस शरीर में पांच इन्द्रियां होती हैं। इन पांचों इन्द्रियों में श्रोत्रेन्द्रिय और चक्षुरेन्द्रिय का विशेष महत्त्व है। कान से सुनी हुई बात को यदि आंखों से देख लिया जाए तो सुना हुआ ज्ञान एकदम पुष्ट हो जाता है। चक्षुरेन्द्रिय का भी मानव जीवन में ज्ञान के क्षेत्र में बहुत ज्यादा महत्त्व है। श्रोत्रेन्द्रिय का महत्त्व तो होता ही है, आंखों से देख लेना, उसका साक्षात कर लेना बहुत ऊंची बात हो जाती है। श्रोत्रेन्द्रिय से आदमी प्रवचन आदि का भी श्रवण करता है। सुनकर आदमी बहुत ज्ञान का अर्जन कर लेता है।
शास्त्र में कहा गया है कि सुनकर आदमी पाप को भी जान लेता है। सुनने के बाद जो श्रेय है, उसका समाचरण किया जाए तो आत्मा का कल्याण हो सकता है। पाप की बातों को जानकर उसे छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। कहा गया है कि सुनकर जान लेने के बाद कहीं काम आए या न आए, सुनना भी अपने आप में कल्याण की बात है। देखा जाए तो प्रवचन श्रवण के लिए आदमी जितनी देर बैठता है, उतनी देर वह अन्य पापकर्मों से बच जाता है। सुनने से कई जानकारियां भी प्राप्त हो जाती हैं। इस दौरान कोई सामायिक आदि करता है तो उसे उसका भी लाभ मिलता है। लगातार अच्छी बातों को सुनने से आदमी के भावों की शुद्धि भी हो सकती है। भावों की शुद्धि होगी और निर्जरा है तो जीवन मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ जाता है। फिर कभी सुनने से जीवन की दिशा व दशा भी बदल सकती है।
मंगल प्रवचन के उपरांत आचार्यश्री ने कहा कि आज विरल संयोग है कि आज नगर का नाम महाप्रज्ञनगर और रहने का स्थान तेरापंथ भवन। यह विरल-सा संयोग है। आचार्यश्री ने ‘हमारे भाग्य बड़े बलवान’ गीत का आंशिक संगान भी किया।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने भी उपस्थित जनता को संबोधित किया। तेरापंथी सभा, भुज के अध्यक्ष श्री वाणीभाई मेहता, श्री रसिकभाई मेहता, श्री चंदूभाई संघवी, श्री मुकेश मेहता, श्री अशोकभाई खाण्डोल, श्री शांतिलाल जैन, श्री त्रिभुवन सिंघवी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। महाप्रज्ञनगर की महिलाओं ने स्वागत गीत का संगान किया। बालिका परी ने अपनी बालसुलभ प्रस्तुति दी।

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