Jain Terapanth News Official Website

चेतना के रूपांतरण की प्रकिया है-प्रेक्षाध्यान : साउथ कोलकात

Picture of Jain Terapanth News

Jain Terapanth News

मुनिश्री जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में तथा प्रेक्षा फाउन्डेशन के तत्त्वावधान में प्रथम विश्व ध्यान दिवस तेरापंथ भवन में समारोह पूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर मुनिश्री जिनेश कुमार जी ने कहा कि जिस प्रकार शरीर में शिर का, वृक्ष में जड़ का मूल्य है उसी प्रकार आत्म-साधना में ध्यान का मूल्य है। मन, वचन, काया का। स्थिरीकरण ही ध्यान है। निर्विषय मन ही ध्यान है। ध्यान का अर्थ है-जागरूकता। हम कोई प्रवृत्ति करें उसमें जागरूकता की परम अपेक्षा रहती है। जागरूकता हटी तो दुर्घटना घटी, इसलिए हर प्रवृति में जागरूकता जरूरी है। ध्यान वर्तमान में जीने की प्रेरणा देता है। ध्यान स्वभाव परिवर्तन की प्रकिया है। ध्यान से अनेक शक्तियां, लब्धियां प्राप्त होती है। ध्यान कर्म निर्जरा का कारण है। ध्यान से आत्मानुभूति आनंदानु भूति होती है। ध्यान से व्यक्ति समाधि को प्राप्त होता है।
मुनिश्री ने आगे कहा कि ध्यान की पृष्ठभूमि कायोत्सर्ग है। कायोत्सर्ग भेद विज्ञान की साधना है। आत्मा और शरीर की अलग अलग है। इसकी अनुभूति कायोत्सर्ग से संभव है। कायोत्सर्ग तनाव मुक्ति की साधना है। भगवान महावीर ने ध्यान और तप के द्वारा केवला ज्ञान को प्राप्त किया। ध्यान तीर्थ है, शक्ति है तप है। प्रेक्षाध्यान आचार्य श्री तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञजी के उर्वरा मस्तिष्क की देन है। उन्होंने प्रेक्षाध्यान का आयाम देकर तनाव से ग्रस्व लोगों को एक प्रकार की संजीवनी दी है। बहुत बडा उपकार किया आचार्य श्री महाश्रमण जी ने इस वर्ष को प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष घोषित किया। ज्यादा से ज्यादा श्रावक-श्राविकाओं को प्रेक्षाध्यान की साधना करके जीवन को सफल बनाना चाहिए। मुनिश्री ने प्रेक्षाध्यान के प्रयोग कराए। इस अवसर पर मुनिश्री कुणाल कुमार जी ने गीत का संगान किया। प्रेक्षा प्रशिक्षिका रश्मि सुराणा ने प्रेक्षाध्यान के बारे में बताया। प्रेक्षा प्रशिक्षिकाओं ने प्रेक्षागीत से कार्यक्रम का शुभारंभ किया। आभार वंदना डागा व संचालन सुनिता जैन ने किया। अच्छी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

इस पोस्ट से जुड़े हुए हैशटैग्स