Jain Terapanth News Official Website

समय धन के समान महत्त्वपूर्ण, व्यर्थ गंवाने से बचने का हो प्रयास : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

Picture of Jain Terapanth News

Jain Terapanth News

-विदर्भ क्षेत्र की ग्रामीण जनता राष्ट्रसंत के दर्शन व प्रवचन से हो रही लाभान्वित
-11.5 कि.मी. का विहार कर मातमल गांव के किशनलालजी के निवास स्थान पधारे महातपस्वी महाश्रमण
29.05.2024, बुधवार, मातमल, बुलढाणा (महाराष्ट्र) :
महाराष्ट्र की धरा पर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान, राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में विदर्भ के ग्रामीण इलाकों को पावन बना रहे हैं। पहाड़ी भागों पर सुदूर क्षेत्रों में बसे ग्रामीण जनता ऐसे महामानव के दर्शन व मंगल प्रवचन का श्रवण कर अपना जीवन धन्य बना रही है। वर्तमान में खेत पूरी तरह खाली ही दिखाई दे रहे हैं। पहाड़ी वृक्ष और खेतों के आसपास खड़े अनेक प्रकार के वृक्ष आदि पशुओं, ग्रामीण जनता व पक्षियों को आश्रय प्रदान करने वाले बन रहे हैं। इस भयंकर गर्मी में भी महातपस्वी आचार्यश्री का श्रमयुक्त विहार निरंतर जारी है।
बुधवार को प्रातःकाल सूर्योदय के कुछ समय पश्चात शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल के साथ बिबी गांव में स्थित साहकार विद्या मंदिर से मंगल प्रस्थान किया। बिबी के ग्रामीणों ने आचार्यश्री के दर्शन से पुनः लाभान्वित हुए। संकरा रास्ता, उतार-चढ़ाव से युक्त मार्ग लोगों को सावधानी से चलने को सचेत कर रहा था। इस मार्ग में आने वाले अनेक गांव के ग्रामीण जनता को आचार्यश्री के दर्शन व आशीष से लाभान्वित होने का अवसर मिला। जन-जन को आशीष प्रदान करते हुए लगभग साढे ग्यारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री मातमल गांव में स्थित श्री किशनलालजी आदि भाइयों के निवास स्थान में पधारे। ग्रामीण जनता ने पूज्यप्रवर का भावभीना स्वागत किया।
निवास स्थान के परिसर में ही आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव ये चार चीजें बताई गई हैं। किसी भी कार्य को करने के लिए अथवा होने के लिए क्षेत्र अर्थात् स्थान और काल अर्थात् समय का होना अतिआवश्यक होता है। कार्य को करने के लिए स्थान और समय दोनों चाहिए। स्थान है समय नहीं तो भी कार्य नहीं हो सकता और समय है और स्थान नहीं तो भी कार्य नहीं हो सकता। जिस प्रकार पढ़ाई करनी है तो उसके लिए विद्यालय, शिक्षण संस्थाएं अथवा कोई अन्य स्थान निर्धारित किया जाता है। फिर उसके लिए समय भी निर्धारित किया जाता है। उस निर्धारित समय पर पहुचंने से पढ़ाई का कार्य पूरा होता है। व्याख्यान देना होता है तो उसके लिए भी स्थान का भी निर्धारण होता है और समय भी निर्धारित किया जाता है। इसी प्रकार भोजन बनाने के लिए भी स्थान और समय का निर्धारण होता है। कोई भी कार्य हो, उसके लिए समय और स्थान अतिआवश्यक चीजें हैं।
आकाश अनंत है, उसी प्रकार क्षेत्र भी अनंत है और काल भी अनंत है। पता नहीं कितने काल समाप्त हो गए और आगे भी कितने काल आने वाले होंगे। काल अर्थात् समय जो प्रतिदिन प्रत्येक प्राणी को फ्री में प्राप्त होता है। इसके यहां राजा-रंक की बात नहीं होती, समय सबको एक दिन में एक जैसा ही प्राप्त होता है। समय इस संदर्भ में निष्पक्ष होता है। इसी प्रकार मृत्यु भी निष्पक्ष होती है। उसके यहां भी अमीर-गरीब का कोई महत्त्व नहीं होता। काल की गति कभी नहीं रूकती। इसलिए आदमी को समय के साथ आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। समय के साथ विकास करने का प्रयास करना चाहिए। चौबीस घंटे का फ्री में मिलने वाला समय बहुत महत्त्वपूर्ण है, जो एकबार बीत जाने पर वापस नहीं मिलता। समय को धन के समान बताया गया है। इसलिए आदमी को समय का भी सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। विवेकपूर्ण ढंग से और योजनाबद्ध तरीके से समय सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री निवास स्थान प्रदान करने वाले श्री किशनलालजी के परिवार को विशेष आशीर्वाद प्रदान किया।

इस पोस्ट से जुड़े हुए हैशटैग्स