-प्रातः 10 तो सायंकाल 4 कि.मी. का अखण्ड परिव्राजक ने किया विहार
-गुरु मिश्री होमियोपैथी मेडिकल कॉलेज पूज्यचरणों से हुआ पावन
-जनता व मेडिकल के विद्यार्थियों ने स्वीकार की प्रतिज्ञाएं
15.05.2024, बुधवार, शेलगांव, जालना (महाराष्ट्र) :
मई की गर्मी से जनजीवन जहां अस्त-व्यस्त हैं, वहीं जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी मानवता के कल्याण के लिए इस भीषण गर्मी में भी प्रतिदिन विहार कर रहे हैं। इतना ही नहीं, प्रायः दो-दो विहार भी कर अपनी अखण्ड परिव्राजकता को वृद्धिंगत कर रहे हैं। बुधवार को प्रातःकाल आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के साथ गतिमान हुए। जन-जन को आशीष प्रदान करते व समयानुसार मंगल मार्गदर्शन प्रदान करते हुए आचार्यश्री आगे बढ़ रहे थे। मंगलवार की रात्रि में हुई बारिश के कारण आज मौसम में थोड़ी नरमी महसूस हो रही थी तथा सुबह में विहार के दौरान आसमान में बादलों के आवागमन से सूर्य भी अभी अदृश्य-से बने हुए थे तो और भी राहत मिल रही थी। मौसम की अनुकूलता और प्रतिकूलता से सर्वथा मुक्त रहते हुए महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी गतिमान थे। मार्ग में बदनापुर गांव में स्थित जैन स्थानक में भी पधारे। आचार्यश्री के आगमन से संबंधित लोग अत्यंत हर्षविभोर थे। विहार के दौरान आचार्यश्री ने छत्रपति संभाजीनगर से जालना जिले में मंगल प्रवेश किया। लगभग 10 किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री शेलगांव में स्थित गुरु मिश्री होमियोपैथी मेडिकल कॉलेज में पधारे।
इस परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता व मेडिकल के विद्यार्थियों को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि पांच इन्द्रियां बताई गयी हैं। इनमेें भी बताया गया कि जिस प्राणी के श्रोत्रेन्द्रिय अर्थात् कान होता है, वह इन्द्रिय दृष्टि से विकसित प्राणी होता है। कितने-कितने प्राणियों में पांचों इन्द्रियां नहीं होती हैं। सुनना कान का व्यापार है, प्रवृत्ति है। सुनने से ज्ञान की वृद्धि होती है। सुनकर आदमी अच्छी बातों को भी जानता है और बुरी बातों को भी जान सकता है। आदमी को क्या सुनना, कैसे सुनना और क्यों सुनना इन कसौटियों पर कसकर सुना जाए तो अच्छी दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। आदमी को अच्छी बातों को सुनें। ज्ञानी संतों व महात्माओं के प्रवचन को सुनने का प्रयास हो। किसी दुःखी आदमी के दुःख को सुनने का प्रयास हो। उसकी मदद की बात अलग है, किन्तु उसके दुःख को अवश्य सुन लेने का प्रयास करना चाहिए। अच्छी चीजों को अच्छे मन और ध्यानपूर्वक सुनने का प्रयास करना चाहिए। ऐसे श्रवण से ज्ञान का अच्छा विकास हो सकता है। गलत और बुरी बातों को सुनने से बचने का प्रयास करना चाहिए।
जहां तक संभव हो, सत्संगति करने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए कहा जाता है कि एक घड़ी, आधी घड़ी, आधी में पुनि आध। तुलसी संगत साधु हरे कोटि अपराध। जितना समय भी मिल जाए, साधु की संगति सदैव कल्याणकारी होती है। सुनने से कभी समस्याओं का समाधान का मिल जाता है तो कभी सही दिशा की प्राप्ति हो सकती है।
आचार्यश्री ने उपस्थित विद्यार्थियों को चोरी, झूठ और कपट से बचते हुए ज्ञान के विकास और अच्छे संस्कारों की शुद्धि भी बने, ऐसी मंगल प्रेरणा प्रदान की। प्रेरणा देने के उपरान्त आचायश्री के आह्वान पर सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति के संकल्पों विद्यार्थियों व अन्य ग्रामीणों से सहर्ष स्वीकार किया।
कॉलेज परिवार की ओर से श्री योगेश देसरड़ा ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। श्रीमती कोमल व श्रीमती कंचन शांतिलाल देसरड़ा ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।
श्रद्धालुओं की भावनाओं को फलित करने के लिए अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सान्ध्यकालीन विहार भी किया। लगभग चार किलोमीटर का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री नागेवाडी में स्थित कॉलेेज ऑफ इंजीनियरिंग एण्ड टेक्नोलॉजी में रात्रिकालीन प्रवास हेतु पधारे।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी जन्मोत्सव, पट्टोत्सव और दीक्षा कल्याण महोत्सव वर्ष की सुसम्पन्नता के संदर्भ में 16 मई को ही जालना में पावन प्रवेश करेंगे। आचार्यश्री की ऐसी कृपा प्राप्त कर जालना के श्रद्धालु हर्षविभोर बने हुए हैं।