– अमर पंचवटी से चार कि.मी. विहार कर महातपस्वी पहुंचे अष्टमंगल कॉलोनी
– श्रद्धालुओं ने दी भावनाओं को अभिव्यक्ति
18 मार्च, 2025, मंगलवार, गांधीधाम, कच्छ (गुजरात)।
अरब सागर के तट पर स्थित भारत के पश्चिमी छोर पर बसा गांधीधाम नगर। इस नगर में गत पांच मार्च से जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ विराजमान हैं। लगभग तेरह दिनों का प्रवास अमर पंचवटी में करने के पश्चात मंगलवार को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अमर पंचवटी से प्रातः की मंगल बेला में मंगल प्रस्थान किया। हालांकि गुरुदेव का अभी प्रवास गांधीधाम में ही होना था, किन्तु आज प्रवास स्थान का परिवर्तन हो रहा था। विहार के दौरान मार्ग में स्थित अनेकानेक श्रद्धालुओं को अपने निवास, दुकान, प्रतिष्ठान आदि के समक्ष आचार्यश्री के दर्शन करने और उनसे मंगल आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जन-जन पर आशीष बरसाते हुए लगभग चार किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री अष्टमंगल कॉलोनी में स्थित श्री राजूभाई मेहता परिवार के निवास स्थान में पधारे। अपने निवास स्थान में अपने आराध्य को प्राप्त कर मेहता परिवार हर्षविभोर नजर आ रहा था।
निकट ही बने ‘अष्टमंगल समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालु जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि शास्त्र में बताया गया है कि इहलोक और परलोक का हित हो और जिससे सुगति की प्राप्ति हो सके, उसके लिए श्रमण धर्म स्वीकार कर लेना चाहिए। श्रमण धर्म को स्वीकार करने के लिए पहले उसकी अच्छी जानकारी हो, उसके प्रति श्रद्धा हो। इसके लिए आदमी को बहुश्रुत की उपासना और पर्युपासना करनी चाहिए और उनसे अर्थ का विनिश्चय करना चाहिए। किसी अच्छे ज्ञानी से प्रश्न किया जाए तो अच्छा उत्तर अथवा समाधान प्राप्त हो सकता है। जो साधु है एवं ज्ञानी भी हो और उसकी पर्युपासना की जाए, प्रश्न किया जाए तो प्रश्नकर्ता को ज्ञान मिल सकता है।
जीवन में ज्ञान का बड़ा महत्त्व है। सम्यक् ज्ञान, सम्यक् श्रद्धा हो जाए और फिर चारित्र में लाने का प्रयास किया जाए तो बहुत कुछ प्राप्त हो सकता है। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी और परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी हमारे गुरु हुए। गुरुओं की वाणी को सुनने से भी कोई मार्गदर्शन प्राप्त हो सकता है। आदमी के भीतर कुछ भाव हो, फिर बहुश्रुत का नैकट्य प्राप्त हो जाए तो कल्याण की बात हो सकती है। गृहस्थ भी कोई ज्ञानी हो तो उससे भी बोध प्राप्त हो सकता है तो आत्मकल्याण की दिशा में गति हो सकती है।
प्रवचन भी ज्ञान के आदान-प्रदान का एक स्वरूप होता है। एक प्रवचन से आदमी के भीतर कोई विशेष चेतना जागृत हो सकती है, कोई मार्गदर्शन भी प्राप्त हो सकता है। कई बार ज्ञान होते हुए भी बोलने की शैली न हो तो भी अच्छी प्रस्तुति नहीं हो सकती। ज्ञान होने के बाद कई बार प्रस्तुति नहीं हो पाती। बोलने के लिए ज्ञान के साथ बोलने की कला का विकास भी होना चाहिए। इसलिए बहुश्रुत ज्ञानी साधु की पर्युपासना करें ताकि उसका इहलोक, परलोक हित हो सके और वह सुगति की दिशा में आगे बढ़ सके। आचार्यश्री ने अष्टमंगल कॉलोनीवासियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरांत साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने गांधीधाम की जनता को उद्बोधित किया। अष्टमंगल कॉलोनी में रहने वाली तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं ने स्वागत गीत का संगान किया। तेरापंथी सभा-गांधीधाम के मंत्री श्री राजूभाई मेहता, तेरापंथ युवक परिषद के उपाध्यक्ष श्री मुकेश भंसाली, श्री पारसमल बाफना, श्री पारसमल दुगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।
